Friday, March 31, 2017

Zee जानकारी: सेहत के लिए जरूरी है दोपहर की नींद

 



नींद की कमी से संघर्ष कर रही है. कुदरत की तरफ से दी गई ये सहूलियत अब Luxury बनती जा रही है. यानी अगर आप 8 से 9 घंटे की नींद ले रहे हैं तो आप दुनिया के सबसे खुशकिस्मत लोगों में से एक हैं. लेकिन हमें यकीन है कि आपमें से बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन्हें पूरी नींद नहीं मिल पा रही होगी. नींद की कमी से संघर्ष कर रहे लोगों को हमारा आज का ये DNA टेस्ट जरूर देखना चाहिए. क्योंकि ये आपकी शारीरिक और मानसिक सेहत से जुड़ा विषय है. और हमें आपकी सेहत की फिक्र है. इस विश्लेषण के लिए हमने दुनिया के कई बड़े Institutes के रिसर्च Papers पढ़े हैं.


आप में से बहुत सारे लोगों ने दोपहर की नींद या झपकी के बारे में ज़रूर सुना होगा, और आपको दोपहर का खाना खाने के बाद नींद ज़रूर आती होगी, लेकिन ज्यादातर लोग दोपहर में सो नहीं पाते हैं, क्योंकि तेज़ी से भागती जिंदगी में दोपहर तो क्या रात में भी ठीक से सोने का वक्त नहीं मिलता है. लेकिन आपको शायद ये नहीं पता होगा कि दोपहर के समय ली जाने वाली नींद आपको कई तरह के रोगों से बचा सकती है. और दोपहर में सोने वाले लोगों का दिमाग भी दूसरे लोगों के मुकाबले ज्यादा तेज़ चलने लगता है.
अमेरिका के Harvard School of Public Health के मुताबिक जो लोग दोपहर में कुछ देर के लिए सो पाते हैं. उनमें Heart Attack की आशंका 33 प्रतिशत तक कम हो जाती है. कामकाजी लोगों को तो इससे और भी ज्यादा फायदा होता है. नौकरी या व्यापार करने वाले लोग अगर दोपहर में एक झपकी ले लें तो उनमें Heart Attack की आशंका 64 प्रतिशत तक कम हो सकती है. ज़रूरी नहीं है कि आप हर रोज़ दोपहर में सोएं. जो लोग हफ्ते में 3 बार भी. दोपहर में 30 मिनट तक सो पाते हैं. उन्हें दिल की बीमारियां होने की आशंका 37 प्रतिशत तक कम हो जाती है.
कुछ दिनों पहले चीन में भी दोपहर की नींद पर एक प्रयोग किया गया था. इस प्रयोग में 65 वर्ष से ऊपर के 3 हज़ार बुजुर्गों को शामिल किया गया. प्रयोग के दौरान पता चला कि जिन बुजुर्गों ने दोपहर में कम से कम 1 घंटे की नींद ली थी उन्होंने दूसरे बुजुर्गों के मुकाबले गणित के सवाल ज्यादा आसानी से हल कर लिए थे. यानी दोपहर की नींद आपको Reboot और Refresh कर देती है। और आपका दिमाग कम्पयूटर की तरह चलने लगता है. 
 
दोपहर की नींद को अंग्रेज़ी में Afternoon Nap या Siesta भी कहते हैं। Siesta एक स्पेनिश शब्द है. जिसका अर्थ होता है दोपहर के वक्त ली जाने वाली छोटी अवधि की नींद. ये नींद अक्सर दोपहर का खाना खाने के बाद ली जाती है. गर्म देशों में तो Siesta यानी दोपहर की नींद परंपरा का हिस्सा हैं. लेकिन 24 घंटे और सातों दिन काम काम में जुटे रहने वाली जीवनशैली ने दोपहर की नींद की अहमियत बहुत कम कर दी है.
 
भारतीय संस्कृति में भी दोपहर की नींद का काफी महत्व रहा है, योग और आयुर्वेद की परंपरा में खाना खाने के बाद ली जाने वाली छोटी अवधि की नींद को वामकुक्षी कहा जाता है। वामकुक्षी के दौरान सिर को बाएं हाथ पर रखकर थोड़ी देर के लिए लेटा जाता है. भगवान विष्णु भी शेषनाग पर वामकुक्षी अवस्था में ही लेटते हैं। इस अवस्था में लेटने से सूर्य-नाड़ी सक्रिय हो जाती हैं, जिससे खाना पचाने में मदद मिलती है.
काम के दौरान नींद की झपकी लेना. जापान की परंपरा का भी हिस्सा है. वहां इसे Inemuri के नाम से जाना जाता है. जापान में अगर कोई कर्मचारी काम करते करते सो जाता है. तो उसे सम्मान की नज़र से देखा जाता है. क्योंकि जापान में लोग ऐसा मानते हैं कि काम के दौरान उसी की नींद आती है. जो कठिन परिश्रम करता है.
जापान में लोग Public Transport से सफर करते हुए, लेक्चर लेते हुए, Class Rooms या फिर दूसरी सार्वजनिक जगहों पर भी अचानक सो जाते हैं. कई लोग तो खड़े खड़े भी झपकी लेने लगते हैं. लेकिन वहां किसी को ये अजीब नहीं लगता. क्योंकि वहां इसे कठिन परिश्रम की पहचान माना जाता है. इटली में भी Siesta की संस्कृति काफी पुरानी है. इटली में आज भी ज्यादातर जगहों पर दोपहर के वक्त, चर्च, म्यूज़ियम और दुकानें बंद कर दी जाती हैं. दुकानों के मालिक घर चले जाते हैं. जहां वो खाना खाकर कुछ देर के लिए सो जाते हैं.
इसी हफ़्ते ब्रिटेन में University of Leeds के वैज्ञानिकों ने कंपनियों के Bosses से अपील की है कि वो अपने कर्मचारियों को दोपहर में कुछ देर के लिए सोने दें. ब्रिटेन में 25 प्रतिशत लोग ऐसे हैं. जो 24 घंटों में 5 घंटे से भी कम देर के लिए सो पाते हैं. वैज्ञानिकों को डर है कि आने वाले वक्त में. ब्रिटेन के लोगों की नींद 4 घंटे के आस-पास रह जाएगी. ऐसे में सिर्फ दोपहर की नींद ही इस कमी को पूरा कर सकती है.
भारत में पश्चिम बंगाल औऱ गोवा जैसे राज्यों में दोपहर की नींद आज भी संस्कृति का हिस्सा है. लेकिन धीरे-धीरे भारतीयों की नींद भी कम होती जा रही है. वर्ष 2015 में  भारतीय लोगों की सोने की आदतों पर, एक कंपनी ने सर्वे किया था. इस सर्वे में पता चला कि भारत के 93 प्रतिशत लोग ठीक से नहीं सो पाते हैं. ये वो लोग हैं जो कम नींद लेने की वजह से कई तरह की परेशानियां झेल रहे हैं. सर्वे में शामिल 72 प्रतिशत भारतीय लोगों ने माना कि वो रात में 3 से 4 बार नींद से उठते हैं. जबकि 87 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कम नींद की वजह से उनकी सेहत पर असर पड़ रहा है. 57 प्रतिशत लोगों ने कहा कि नींद की कमी की वजह से दफ्तर में उनका काम प्रभावित होता है.
ब्रिटेन के मशहूर लेखक Thomas Dekker ने कहा था कि नींद ऐसी सुनहरी रस्सी है जो स्वास्थ्य और शरीर को आपस में बांधे रखती है. Thomas Dekker ने ये बात आज से करीब 300 वर्ष पहले कही थी. जबकि मशहूर वैज्ञानिक Thomas Alva Edison ने कहा था  कि नींद लेना वक्त को बर्बाद करने जैसा है और ये एक अपराध है. नींद की आदत को हमने गुफाओं में सोने वाले अपने पूर्वजों से हासिल किया है.
दो अलग अलग समय पर. दो महान लोगों द्वारा नींद के संबंध में कही गई दो अलग अलग बातें. ये साबित करने के लिए काफी हैं. कि वक्त के साथ इंसान ने अच्छी नींद को कम अहमियत देना शुरू कर दिया है. जिसका असर हमारी सेहत और हमारे दिमाग पर पड़ रहा है. ये ऐसा दौर है जब भारत सहित पूरी दुनिया के लोगों को नींद का महत्व पहचानना होगा. इसीलिए हमने नींद को नज़रअंदाज़ करने वालों के लिए एक DNA टेस्ट तैयार किया है. अगर आपको भी दोपहर का खाना खाने के बाद थोड़ी देर सुस्ताने या सोने का मन करता है. तो आपको हमारा ये विश्लेषण ज़रूर देखना चाहिए और अगर आप किसी कंपनी या Organization के Boss हैं. तो आपको ये विश्लेषण देखकर सोचना चाहिए. कि क्या आप अपने कर्मचारियों को दोपहर में थोड़ी देर के लिए सोने की इजाज़त दे सकते हैं. 
Fitness Gadgets बनाने वाली एक विदेशी कंपनी के मुताबिक भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है. जहां के लोग सबसे कम देर सोते हैं. जनवरी 2016 से दिसंबर 2017 के दौरान जमा किए गए Data के मुताबिक दुनिया में सबसे कम नींद जापान के लोग लेते हैं. एक जापानी  औसतन 6 घंटा 35 मिनट सोचा है. इसके बाद भारतीयों का नंबर आता है. जिनकी औसत नींद 6 घंटा 55 मिनट की है। 6 घंटा 56 मिनट की औसत नींद के साथ सिंगापुर और ताइवान तीसरे और चौथे नंबर पर हैं. 18 देशों  की इस Ranking में सबसे ज्यादा देर तक सोने वाला देश न्यूजीलैंड है. जहां लोग औसतन 7 घंटा 25 मिनट की नींद लेते हैं. इसके बाद  ब्रिटेन का नंबर आता है. जहां लोग औसतन 7 घंटा और 16 मिनट सोते हैं.
1950 में पूरी दुनिया के लोग औसतन 8 घंटे की नींद लिया करते थे. जबकि 2013 आते आते लोगों की नींद सिर्फ 6 घंटे 30 मिनट ही रह गई. हर रोज़ 8 घंटे की नींद को आधार बनाया जाए तो 90 वर्ष तक जीने वाला एक व्यक्ति अपने जीवन के 32 वर्ष सोते हुए बिताता है. कई लोगों को ये वक्त की बर्बादी लगता है. लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि नींद अच्छी सेहत के लिए कुदरत की तरफ से दिया गया सबसे बड़ा वरदान है. वैज्ञानिकों के मुताबिक पहले इंसान के पूर्वज पेड़ों पर रहते थे और तब नीचे गिरने के डर की वजह से उनकी नींद कच्ची हुआ करती थी. लेकिन आज से करीब 20 लाख वर्ष पहले इंसानों ने ज़मीन पर रहना शुरू कर दिया और तभी से बिस्तर पर सोने की भी शुरूआत हुई. गिरने का डर खत्म होने की वजह से इंसानों की नींद लंबी हो गई. और इंसानों को गहरी नींद भी आने लगी. इसका मतलब ये है कि ये सब क्रमिक विकास यानी Evolution के तहत हुआ है. लेकिन यहां हम आपको नींद से जुड़ी एक वैधानिक चेतावनी भी देना चाहते हैं. दोपहर में नींद लेने का हक उन्हीं लोगों को होना चाहिए. जो कड़ी मेहनत करते हैं. ये छूट उन लोगों की नहीं दी जा सकती. जो कामचोरी करते हैं और अपना काम ईमानदारी से नहीं करते हैं.

No comments:

Post a Comment